असद के एनकाउंटर और अतीक-अशरफ की हत्या पर बवाल, लेकिन ऐसी नौबत आती ही क्यों है? कोई इसका जवाब तो दे

अतीक अहमद जैसा दुर्दांत अपराधी संसद तक पहुंच कैसे जाता है? चर्चा इस पर होने के बजाय इस बात पर है कि उसे मार क्यों दिया गया? क्या

अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या और उससे पहले बेटे असद अहमद का एनकाउंटर आज चौतरफा चर्चा का विषय है। एक वर्ग एनकाउंटर के चलन पर सवाल उठा रहा है। वही वर्ग यह आरोप भी लगा रहा है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार मुसलमानों को टार्गेट कर रही है। इससे पहले जब एक दुर्दांत अपराधी विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ था, तब भी वही वर्ग दावा कर रहा था कि ब्राह्मण की हत्या की गई है इसलिए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को ब्राह्मण मतदाताओं के गुस्से का सामना करना होगा। लेकिन सवाल है कि क्या अपराधियों का जाति और धर्म बताकर एनकाउंटरों पर सवाल उठाना सही है? क्या खूंखार अपराधियों के लिए एनकाउंटर के वक्त कानून की अवहेलना का हवाला देने भर से काम हो जाएगा या अपराधियों के अपराध को अंजाम देते वक्त भी कानून के उल्लंघन की चिंता करनी होगी? एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग और कानून के राज पर जारी बहस के बीच हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) में संपादकीय पन्ने पर दो भिन्न नजरियों पर लेख छपे हैं। अर्घ्य सेनगुप्ता जहां एनकाउंटरों को गलत ठहरा रहे हैं तो दूसरी तरफ आर. जगन्नाथ एनकाउंटर के हालात पैदा होने के असल कारणों की गहराई में जाने पर जोर दे रहे हैं। आइए दोनों की दलीलों को जानें…

अर्घ्य सेनगुप्ता कहते हैं-
अतीक अहमद ने भारतीय नागरिक और भारतीय राज्य का बिल्कुल कुरूप चेहरा दिखाया है। जब अतीक का आतंक सबाब पर था तब राज्य ने उसे कानून और संविधान का पाठ पढ़ाने की जगह उसके सामने घुटने टेक दिए। सत्ता और सियासत ने अतीक की बादशाहत को सलाम ठोका बल्कि उसकी बढ़-चढ़कर खातिरदारी की। उसकी माफियागिरी को पंख दिए। और जब अतीक मारा गया तो राज्य ने फिर से अपनी नपुंसकता का इजहार किया। अतीक पर तीन हमलावरों ने कैमरे के सामने दनादन गोलियां दागीं और राज्य चुपचाप देखता रहा। मतलब, अतीक जब जिंदा था तब कानून उसके सामने रेंग रहा था और जब अतीक मारा गया तब कानून का भी जनाजा निकल गया। कहने का मतलब अतीक के जीते जी कानून मृतप्राय रहा और उसके मरने के बाद भी कानून में इतनी जान नहीं लौट सकी कि वो अपने घुटनों पर खड़ा हो जाए। यही कारण है जब कानून का शासन और जंगल के कानून के बीच चुनाव का वक्त आया तो जनता ने हमेशा जंगल के कानून को ही पसंद किया और उसकी ही पीठ थपथपाई। याद कीजिए 2019 में हैदराबाद में एक वेटनरी डॉक्टर के गैंगरेप के चार आरोपियों का कथित एनकाउंटर हुआ तो कैसे देशभर में खुशियों की लहर दौड़ गई।

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June 1, 2025
1:38 am

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