संदेशखाली के बाद भी बंगाल का संदेश वही… मां, माटी, मानुष

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ‘मां, माटी, मानुष’ के नारे के साथ साल 2011 में 34 सालों तक शासन करने वाली लेफ्ट पार्टियों को पराजित कर सत्ता में आयी थी. 13 सालों के बाद भी अभी भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का ‘मां, माटी, मानुष’ का जलवा बरकरार है. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कड़ी चुनौती के बावजूद ममता बनर्जी तीसरी बार सत्ता में वापसी की थी और अब फिर जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी 400 पार और बंगाल में 35 से अधिक सीटों पर जीत का दावा कर रही है. तृणमूल कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की थी

बीजेपी साल 2019 के आंकड़े को भी नहीं छू पाई और उसकी सीटों की संख्या में भारी कमी आई है. वहीं, लेफ्ट बंगाल में फिर से अपना खाता नहीं खोल पाया है और कांग्रेस भी हाशिये पर पहुंच गई है. लोकसभा चुनाव से पहले संदेशखाली चुनाव में मुद्दा बना था. संदेशखाली में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को बीजेपी ने मुद्दा बनाया था, लेकिन इस चुनाव में संदेशखाली के मुद्दे का कोई असर नहीं हुआ. बशीरहाट लोकसभा सीट जिसके अधीन संदेशखाली है, इस सीट से बीजेपी की उम्मीदवार और संदेशखाली आंदोलन की चेहरा रेखा पात्रा अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई और न ही बशीरहाट के अतिरिक्त राज्य के किसी अन्य लोकसभा क्षेत्र पर संदेशखाली का कोई प्रभाव पड़ा है.

सभी 42 सीटों पर ममता ने खड़े किए उम्मीदवार

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ इंडिया गठबंधन के गठन में अहम भूमिका निभाने के बावजूद सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस की कांग्रेस के साथ तकरार हो गयी थी. ममता बनर्जी ने कांग्रेस की मांग के अनुरूप सीट देने से इनकार कर दिया था और सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया था. इस तरह से राज्य में तृणमूल कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दल कांग्रेस और लेफ्ट अलग-अलग चुनाव लड़े. कांग्रेस और लेफ्ट का लगभग दर्जन भर सीटों पर समझौता भी हुआ था.

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June 1, 2025
1:56 pm

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