गीता प्रेस, हिंदू धर्म ग्रंथों को छापने वाला दुनिया का सबसे बड़ा पब्लिशिंग हाउस है। यह अब तक 41.7 करोड़ किताबें छाप चुका है। उसमें 16.21 करोड़ किताबें भागवत गीता की हैं। 11.73 करोड़ तुलसी दास की रामचरित मानस। 2.58 करोड़ पुराण और उपनिषद हैं।
कमाई की बात करें तो 2022 में 100 करोड़ रुपए टर्नओवर रहा। जबकि 2016 में सिर्फ 39 करोड़ रुपए था। हर साल गीता प्रेस के टर्नओवर में बढ़ोतरी होती चली गई। यहां तक कि जीएसटी, नोटबंदी और कोविड के दौर में जब बाकी पब्लिशिंग हाउस की कमाई में गिरावट आई, तब भी गीता प्रेस का टर्नओवर बढ़ता रहा।
वेबसाइट के मुताबिक संस्था का उद्देश्य है सनातन धर्म के मूल्यों का आम लोगों तक प्रचार-प्रसार करना। गीता प्रेस को हाल ही में 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ देने की घोषणा की गई है। इसके बाद से यह चर्चा में है। आज मेगा एम्पायर में जानिए गीता प्रेस के एम्पायर बनने की कहानी…
बंगाल के मारवाड़ी बिजनेसमैन जयदयाल गोयनका ने की गीता प्रेस की शुरुआत
जयदयान गोयनका बंगाल के बंकुरा के रहने वाले थे। जाति से मारवाड़ी और काम से बिजनेसमैन। कॉटन, मिट्टी तेल, कपड़ा और बर्तनों के कारोबार से जुड़े थे। बिहार से लेकर झारखंड तक एक ईमानदार व्यापारी के रूप में उनकी पहचान थी। इन शहरों में काम के सिलसिले में जयदयाल जाते और काम खत्म होने पर मंडली बनाकर सत्संग करते थे। वहां गीता का पाठ और उस पर चर्चा करते।
कोलकाता में सत्संग के लिए इतनी भीड़ होने लगी कि जयदयाल का घर छोटा पड़ने लगा। तब पूरे ग्रुप ने मिलकर 1922 में कोलकाता में ही बंसतल्ला रोड पर एक जगह किराए पर ली। नाम रखा गोविंद भवन।
गोविंद भवन ही जयदयाल का घर बन गया। वो वहीं रहने लगे। काम से धीरे-धीरे उनका मोह खत्म होने लगा और गीता पर चर्चा के लिए समूह बनाने में मोह का दूसरा सिरा जुड़ने लगा। वो खुद गीता की व्याख्या करने में महारत हासिल कर चुके थे।
600 रुपए की प्रिंटिंग मशीन से किताबें छपनी शुरू हुईं
जयदयाल को महसूस हुआ कि गीता का सही ट्रांसलेशन बाजार में नहीं है। जयदयाल ने यह बात सत्संग में रखी। सत्संग में गोरखपुर के बिजनेसमैन घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार मौजूद थे।
घनश्याम दास ने कहा कि अगर गोरखपुर में प्रेस लगे तो उसे मैं संभाल लूंगा। इसके बाद 1923 में उर्दू बाजार में 10 रुपए महीने किराए पर कमरा लेकर प्रेस की शुरुआत हुई। 600 रुपए का एक हैंड प्रेस खरीदा गया।
3 साल बाद 1926 में 10 हजार रुपए में साहिबगंज के पीछे एक मकान खरीदा गया। आज भी यह गीताप्रेस का मुख्यालय है। आज यह जगह 2 लाख वर्ग फीट में फैली है। परिसर में 1.45 लाख वर्ग फीट में प्रेस और बाकी जगह में मकान और दुकानें हैं।
कल्याण मैगजीन ने गीता प्रेस को चर्चा का केंद्र बना दिया
1926 में दिल्ली में ऑल इंडिया मारवाड़ी अग्रवाल महासभा हो रही थी। सभा में समुदाय के बड़े-बड़े लोगों की जुटान हुई थी। इसमें इंडस्ट्रियलिस्ट घनश्याम दास बिरला और जमनालाल बजाज जैसे लोग मौजूद थे। ये दोनों ही उन दिनों महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे।
सभा में हिंदू धर्म की कुरीतियों को लेकर चर्चा होने लगी। पक्ष-विपक्ष में तर्क दिए जाने लगे। जमनालाल बजाज ने जहां बाल विवाह और पर्दा प्रथा को खत्म करने की बात कही, वहीं उनके सेक्रेटरी खेमका ने हिंदुओं की परंपराओं को बचाए रखने पर जोर दिया।
कुछ दिनों बाद ये बात सामने आई कि खेमका का भाषण हनुमान प्रसाद पोद्दार ने लिखा था। पोद्दार ने सभा में चर्चा हुए मुद्दों को लेकर कल्याण पत्रिका निकालनी शुरू की। इस तरह 1926 से अब तय यह पत्रिका निकलती है।