1962 जैसे नहीं घुस पाएगा चीन; सड़कों, पुलों और सुरंगों का सुरक्षा जाल तैयार

भारतमाला प्रोजेक्ट, सेला टनल, अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे, ट्रांस हाईवे और उत्तराखंड ऑल वेदर रोड जैसे प्रोजेक्ट्स से चीन की नींद उड़ी हुई है। इसी बीच 3 जनवरी 2022 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अरुणाचल प्रदेश में सियोम ब्रिज साइट से BRO (बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन) के 28 नए प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन कर दिया। 9 दिसंबर को भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच तवांग में झड़प के बाद ये सभी प्रोजेक्ट्स और अहम हो गए हैं

भारत लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर सड़कों, पुलों, टनल और रेल नेटवर्क का बड़ा जाल बिछा रहा है। सेला टनल जैसे प्रोजेक्ट्स कितने जरूरी हैं, इसके लिए भारत-चीन युद्ध से जुड़ी एक छोटी सी कहानी जाननी होगी।

ये 17 नवंबर 1962 की बात है, भारत-चीन के बीच जंग छिड़ चुकी थी। गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन सेला पास से करीब 20 किलोमीटर ऊपर खारसा ओल्ड और नुनांग सेक्टर के पास तैनात थी। चीनी सेना आधुनिक हथियारों के साथ घुसी और गढ़वाल राइफल्स के ज्यादातर जवान शहीद हो गए।

इसी बटालियन के एक राइफलमैन थे जसवंत सिंह रावत। जसवंत सिंह ने अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंचाई पर मोर्चा संभाला, उनके साथ स्थानीय मोनपा जनजाति की दो लड़कियां सेला और नूरा भी थीं। जसवंत को इलाके के बारे में पता था, उन्होंने अलग-अलग जगहों पर बंदूकें लगा दीं।

माना जाता है कि कई दिन तक चीनी अकेले जसवंत को भारतीय सैनिकों की टुकड़ी समझते रहे। इस जवाबी हमले में करीब 300 चीनी सैनिक मारे गए थे। बाद में चीनी सेना ने उन्हें घेर लिया, सेला ग्रेनेड हमले में मारी गई और नूरा पकड़ी गई। कहा जाता है कि जसवंत ने खुद को गोली मार ली और चीनी सेना उनका सिर काटकर अपने साथ ले गई। बाद में एक चीनी कमांडर ने वो सिर भारत को लौटा दिया।

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June 4, 2025
11:02 am

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