- सुबह मैदान पर टीमों को आने से रोका और दोपहर में टॉस के लिए डीडीसीए बुला लिया।
-सेमीफाइनल मंे पहुंचे अपनी चहेती टीमों के लिए नियम बदल कर मैच रदद कर आगे करवाने को कह दिया।
-यह तो वही हुआ मैच वेस्ट इंडीज में और टॉस भारत में करवाया जाए।
-विजय कुमार
नई दिल्ली,जून। बीसीसीआई के नियमों की धज्जियां दिल्ली क्रिकेट जिला एसोसिएषन डीडीसीए द्वारा कैसे उडाई जाती है, इसका जीता जागता उदाहरण उसके द्वारा आयोजित हॉटवेदर क्रिकेट के क्वार्टर फाइनल में देखने को मिला। यहीं नहीं मैच किसी अन्य मैदान पर और टॉस डीडीसीए के बरामदेे में। यह तो वही हुआ ना कि विष्व कप का फाइनल वेस्ट-इंडीज में और साउथ अफ्रीका के बीच टॉस उछालने की रसम किसी अन्य देष या मैदान पर हो,है ना डीडीसीए की गजब कहानी।
असल में डीडीसीए की फिदरत में ही है कि वह कोई भी कार्यक्रम उसमें कुछ ना कुछ तो होना ही है। उन्होंने ही नियम बनाए और उसको तोडा भी उन्होंने।
ऐसा इस सीजन में पहली बार नहीं हो रहा, बल्कि एक बार खराब बॉल निकलने के कारण, फिर गर्मी ज्यादा हो रही के कारण मैचों को रोका गया। अगर दो मैचों को भी आगे की ओर धकेल दिया जाता तो षायद यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही नही होता।
असल में कहानी तब आगे बढती है जब मॉडर्न स्कूल मैदान पर मद्रास क्लब और आरआर जीमखाना क्लब के बीच क्वार्टर फाइनल मैच 27 जून को होता है। यह मैच यू ंतो रिजर्व डे के कारण अगले दिन हुआ था। ऐसे ही दूसरा क्वार्टर फाइनल गोल्डन हॉक्स और इंडियन एयर फोर्स के बीच मैच मोहन मीकिंस के मैदान पर होना था। मगर आयोजक रिजव वाले दिर्न भी मैच आयोजित नहीं कर सके। उन्होंने रिजर्व वाले दिन खिलाडियों के मैदान पर पहुंचने पूर्व ही टीमों के कोचों को सुबह 6 बजे फोन करके बोल दिया कि मैदान गीला है और आप मैदान पर नहीं आए। वहीं करीब 11 बजे एक दूसरा फोन करते है कि आप अपने कप्तान के साथ डीडीसीए में आ जाए वहां टॉस कर फैसला किया जाएगा।
मजेदार बात यह है कि नियमों के अनुसार मैच साढे चार बजे तक खेला जा सकता था। ऐसे में ना तो अंपायरों ने मैदान गीला होने की रिपार्ट दी ना ही खिलाडियों को वहां पहुंचने पर मैदान को देखने दिया गया, कैसे और किसने तय किया कि मैदान गीला है। जबकि नियमों के तहत सुपर ओवर तक भी मैच हो सकता था। उसके बाद टॉस होता। मगर डीडीसीए की लीग कमेटी के अज्ञान और नियमों की समझ ना रखने वाले लोगों ने मैदान के बाहर ही टीम की हार जीत का फैसला कर दिया।
लीग कमेटी के लोग यहां भी नहीं रूके अगले दिन जब सोनेट और आरआर जीमखाना तथा एफसीआई और गोल्डन हॉक्स के बीच सेमीफाइनल 29 जून को निष्चित हुए थे तो उनको रदद कर दिया। जबकि नियमों के अनुसार उनके मैच भी रिजर्व दिन आयोजित होने चाहिए थे या फिर टॉस से हार जीत का फैसला करवाना चाहिए था। ऐसे में अच्छी टीम टूर्नामेंट में खेले बिना ही बाहर हो गई।
असल में डीडीसीए की फिदरत में ही है कि वह कोई भी कार्यक्रम उसमें कुछ ना कुछ तो होना ही है। उन्होंने ही नियम बनाए और उसको तोडा भी उन्होंने।
ऐसा इस सीजन में पहली बार नहीं हो रहा, बल्कि एक बार खराब बॉल निकलने के कारण, फिर गर्मी ज्यादा हो रही के कारण मैचों को रोका गया। अगर दो मैचों को भी आगे की ओर धकेल दिया जाता तो षायद यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही नही होता।
असल में कहानी तब आगे बढती है जब मॉडर्न स्कूल मैदान पर मद्रास क्लब और आरआर जीमखाना क्लब के बीच क्वार्टर फाइनल मैच 27 जून को होता है। यह मैच यू ंतो रिजर्व डे के कारण अगले दिन हुआ था। ऐसे ही दूसरा क्वार्टर फाइनल गोल्डन हॉक्स और इंडियन एयर फोर्स के बीच मैच मोहन मीकिंस के मैदान पर होना था। मगर आयोजक रिजव वाले दिर्न भी मैच आयोजित नहीं कर सके। उन्होंने रिजर्व वाले दिन खिलाडियों के मैदान पर पहुंचने पूर्व ही टीमों के कोचों को सुबह 6 बजे फोन करके बोल दिया कि मैदान गीला है और आप मैदान पर नहीं आए। वहीं करीब 11 बजे एक दूसरा फोन करते है कि आप अपने कप्तान के साथ डीडीसीए में आ जाए वहां टॉस कर फैसला किया जाएगा।
मजेदार बात यह है कि नियमों के अनुसार मैच साढे चार बजे तक खेला जा सकता था। ऐसे में ना तो अंपायरों ने मैदान गीला होने की रिपार्ट दी ना ही खिलाडियों को वहां पहुंचने पर मैदान को देखने दिया गया, कैसे और किसने तय किया कि मैदान गीला है। जबकि नियमों के तहत सुपर ओवर तक भी मैच हो सकता था। उसके बाद टॉस होता। मगर डीडीसीए की लीग कमेटी के अज्ञान और नियमों की समझ ना रखने वाले लोगों ने मैदान के बाहर ही टीम की हार जीत का फैसला कर दिया।
लीग कमेटी के लोग यहां भी नहीं रूके अगले दिन जब सोनेट और आरआर जीमखाना तथा एफसीआई और गोल्डन हॉक्स के बीच सेमीफाइनल 29 जून को निष्चित हुए थे तो उनको रदद कर दिया। जबकि नियमों के अनुसार उनके मैच भी रिजर्व दिन आयोजित होने चाहिए थे या फिर टॉस से हार जीत का फैसला करवाना चाहिए था। ऐसे में अच्छी टीम टूर्नामेंट में खेले बिना ही बाहर हो गई।
सूत्रों की मानें तो यह सब अपनी चहेती टीम को किसी तरह से फाइनल में पहुंचने की मषक्त की जा रही है ताकि वह टॉस में ना हार कर मैदान में जीत जाएं। वरना क्या बात है दो टीमों के लिए टॅास बाकी के लिए मैचों को रदद कर आगे के दिनों मंे कर देना। इस बाबत हमने लीग कमेटी के सदस्यों से बात करनी चाही तो उन्होंने कुछ भी आन रिकार्ड बोलने से मना कर दिया। यहीं है अंधा कानुन ।
फोटो‘ — टीमों के कप्तानों के बीच मैदान के बाहर टॉस करवाते डीडीसीए के अधिकारी गण।